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कूड़े को 'सोना' बनाती महिलाओं की कहानी

Published - Thu 19, Sep 2019

लखनऊ-रायबरेली नेशनल हाईवे पर एक छोटा सा गांव है लालपुर। यह गांव उत्तर प्रदेश में स्वच्छता के मामले में सबसे ऊपर माना जाता है। गांव यूं ही स्वच्छ नहीं हुआ। यहां की महिलाओं ने एक छोटी सी पहल करके इसकी किस्मत और तस्वीर संवारी है। गांव में महिलाएं सुबह रिक्शा लेकर निकल जाती हैं और गांव के हर घर से कूड़ा एकत्र करती हैं। इस काम के लिए वह हर घर से तय शुल्क लेती हैं।

jaevik khaad

 लखनऊ। अममून कचरे को हम गंदगी समझकर फेंकना ही उचित समझते हैं और इसको बेकार की चीज समझते हैं। लेकिन देश में कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं ,जो कूडे़ को सोना बनाकर महिलाओं को रास्ता दिखा रही हैं। लखनऊ-रायबरेली नेशनल हाईवे पर एक छोटा सा गांव है लालपुर। यह गांव उत्तर प्रदेश में स्वच्छता के मामले में सबसे ऊपर माना जाता है। गांव यूं ही स्वच्छ नहीं हुआ। यहां की महिलाओं ने एक छोटी सी पहल करके इसकी किस्मत और तस्वीर संवारी है। गांव में महिलाएं सुबह रिक्शा लेकर निकल जाती हैं और गांव के हर घर से कूड़ा एकत्र करती हैं। इस काम के लिए वह हर घर से तय शुल्क लेती हैं।

कचरे से तैयार करतीं हैं जैविक खाद

घरों से इकट्ठा किए जाने वाले सूखे और गीले कचरे को अलग-अलग रखा जाता है और इससे जैविक खाद तैयार की जाती है। जैविक खाद बनाने के साथ-साथ महिलाएं गांव में स्वच्छता का पाठ भी गांव वालों को पढ़ा रही हैं। राजधानी से करीब 40 किलोमीटर दूर लालपुर गांव में करीब सवा दो सौ घर हैं। पहले इस गांव में गंदगी का अंबार लगा रहा था, लेकिन अब सबकुछ बदल चुका है। पीएम मोदी के स्वच्छता अभियान से प्रेरणा पाकर ग्राम प्रधान जितेंद्र ने हरिता स्वयं सहायता समूह तैयार किया। इसमें ऐसी महिलाओं को शामिल किया जो घर की देहरी से निकल कर परिवार के लिए कुछ करना चाहती थीं। अध्यक्ष निर्मला सिंह, सचिव सीमा और कोषाध्यक्ष गायत्री की अगुवाई में यह समूह केवल लालपुर में ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों में भी स्वच्छता और आत्मनिर्भरता की अलख जगा रहा है। अब गांव का नाम अफसरों की जुबान पर है। तमाम योजनाओं के रूप में इसका लाभ यहां के हर व्यक्ति को मिल रहा है।