'माण देसी फाउंडेशन' की स्थापना करने वालीं चेतना सिन्हा का मकसद ग्रामीण महिलाओं का उत्थान करना था। आज महिला सहकारी बैंक ‘माण देसी बैंक’ की 7 शाखाएं हैं, जिनमें 2 लाख महिला ग्राहक हैं। यह बैंक गांव की गरीब महिलाओं को रुपयों के साथ अन्य वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है।
नई दिल्ली। बचपन खेल-कूद और मस्ती करने के लिए जाना जाता है। बच्चों को गर्मी की छुटि्टयों का बेसब्री से इंतजार रहता है। लेकिन 10 साल की उम्र में ही यदि कोई समाज के लिए कुछ करने में जुट जाए तो इसे क्या कहेंगे। कुछ ऐसा ही किया था 'माण देसी फाउंडेशन' की स्थापना करने वालीं चेतना गाला सिन्हा ने। मुंबई की चेतना जब महज 10 साल की थीं तो वह गर्मियों की छुट्िटयों में सहेलियों के साथ खेलने की बजाए एक संस्था में पहुंचीं और बोली की वह उनके साथ काम करना चाहती हैं। उन्होंने इसके एवज में सिर्फ चलने के लिए एक साइकिल की मांग की।
यहीं से शुरू होती है, स्वावलंबन और महिला सशक्तिकरण की कहानी की। चेतना गाला सिन्हा ने आगे चलकर 'माण देसी फाउंडेशन' की स्थापना की। इसका मकसद ग्रामीण महिलाओं का उत्थान करना था। अर्थशास्त्र की प्रोफेसर रह चुकीं चेतना ने ग्रामीण महिलाओं के उत्थान के लिए न सिर्फ अपनी नौकरी छोड़ दी, बिल्क अपना पूरा जीवन ही समर्पित कर दिया। माइक्रो फाइनेंस कंपनी ‘माण देसी महिला सहकारी बैंक’ की अध्यक्ष चेतना सिन्हा का जन्म मुंबई मेंे एक गुजराती परिवार में हुआ था। चेतना ने मुंबई से ही पहले बी. कॉम और फिर 1982 में अर्थशास्त्र में मास्टर्स की डिग्री हासिल की। राजनीति से लगाव आैर लगातार सक्रियता के कारण उनका बिहार जाना हुआ। यहां उनकी मुलाकात म्हसवाड़ के किसान नेता विजय सिन्हा से हुई। कुछ दिनों का साथ दोनों को इतना भाया कि उन्होंने शादी कर ली। 1987 में चेतना सिन्हा ने मुंबई छोड़ दिया और पति के साथ म्हसवाड़ में रहने लगीं।
49 डिग्री तापमान में महिलाओं को काम करते देख पसीजा दिल
चेतना की जिंदगी में जेपी आंदोलन के कारण बड़ा बदलाव आया। आंदोलन में सहभागिता के दौरान वह एक दिन सतारा जिले के सूखाग्रस्त इलाकों में पहुंची तो वहां के हालात देख हैरान रह गईं। वह ये देखकर चौंक गईं कि 49 डिग्री तापमान में रोजगार गारंटी योजना के नाम पर किस तरह से महिलाओं से पत्थर तुड़वाए जा रहे हैं। यह सब देखकर चेतना को दिल पसीज गया। उन्होंने इन महिलाओं की स्थिति बदलने का संकल्प कर लिया।
सतारा के एक गांव से की शुरुआत
इसके लिए उन्होंने सबसे पहले सतारा जिले के एक गांव को चुना। उन्होंने कामकाजी महिलाओं को बचत के लिए प्रेरित किया, ताकि वह रुपए जोड़कर कुछ नया काम कर सकें। इसके बाद उन्होंने अपनी योजना के दूसरे पड़ाव पर काम शुरू किया। महिलाओं को इकट्ठा किया और एक सहकारी बैंक खोलने का खाका तैयार किया। लेकिन परेशानी यह थी कि ये महिलाएं ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थीं, जिस कारण इन्हें बैंक को लाइसेंस नहीं मिल सका।
परेशानियों के आगे नहीं टेके घुटने
पहले ही पड़ाव पर पहाड़ जैसी मिली परेशानी से भी चेतना हारी नहीं। उन्होंने बैंक को स्थापित करने के लिए सीधे भारतीय रिजर्व बैंक को प्रस्ताव भेजा। वहां से भी पहले जैसा ही ठगा से जवाब आ गया। लेकिन चेतना ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने गांव की महिलाओं को पढ़ाने की ठानी और दिन-रात एक कर दिया। छह महीने में ही उनकी मेहनत रंग लाई। बैंक को भी उनकी लगन का अहसास हो गया। जिस कारण सहकारी बैंक को मंजूरी दे दी गई। इस तरह 1997 में भारत के पहले महिला सहकारी बैंक ‘माण देसी बैंक’ की स्थापना हुई। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से सहकारी लाइसेंस प्राप्त करने वाला ये पहला ग्रामीण महिला सहकारी बैंक था। म्हसवाड़ से शुरू हुए इस बैंक की आज पूरे महाराष्ट्र में 7 शाखाएं हैं। इस बैंक की मार्केट वैल्यू 150 करोड़ रुपए है। बैंक की इन 7 ब्रांचों में तकरीबन 2 लाख महिला ग्राहक हैं। यह बैंक गांव की गरीब महिलाओं को रुपयों के साथ अन्य वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है।
कौन बनेगा करोड़पति में भी बताई अपने संघर्ष की कहानी
कौन बनेगा करोड़पति के एक विशेष एपिसोड में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के एक सवाल के जवाब में चेतना ने कहा कि शादी के बाद उन्हें अपने ससुराल में घर के पीछे ही खुले में टॉयलेट जाना पड़ता था। इससे काफी शर्मिंदगी का अहसास होता था। यह सब देखकर मैंने बदलाव का मन बनाया और गांव में शौचालय बनवाने का काम शुरू कराया। माण देसी फाउंडेशन की शुरुआत 1996 में महाराष्ट्र के सतारा जिले के म्हसवाड़ गांव से हुई थी।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.