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महिलाओं के सशक्तिकरण की एक सम्पूर्ण वेबसाइट

शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहीं ये महिलाएं

Published - Sun 30, Aug 2020

समाज में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए बहुत से लोग प्रयास कर रहे हैं। कई महिलाएं अपनी ही बिरादरी के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रही हैं। ये महिलाएं न केवल दूसरों को जागरूक कर रही हैं, बल्कि उन्हें सबल बनाने के प्रयास में भी जुटी हैं। इनका मानना है महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिलेगा तो समाज में अपने आप ही सुधार आएगा। आइये जानते हैं ऐसी ही कुछ महिलाओं के बारे में ....

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आगरा। आज रूबरू होते हैं उन महिलाओं से जो आधी आबादी के हक की आवाज उठा रही हैं। महिलाओं की सुरक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और उनके हक के लिए एनजीओ बनाई है या उससे जुड़कर न केवल मुहिम चला रही हैं, बल्कि दूसरों के लिए मिसाल भी कायम कर रही हैं। दूसरी महिलाओं का दर्द समझकर उनको हौसला देना, उनका आत्मविश्वास बढ़ाना और अपने पैरों पर खड़े होने का जज्बा देने की इस मुहिम में मुश्किलें कई हैं। धमकी मिलती है, अपशब्द कहे जाते हैं लेकिन हिम्मत नहीं टूटती।

 1. आरोपी पक्ष के लोग देते थे धमकी : शीला बहल

शीला बहल ने महिला शांति सेना की स्थापना की है। उन्होंने 1994 से लॉर्ड कृष्णा समिति से जुड़कर बेटियों की शिक्षा के लिए काम शुरू किया। 2005 में महिला शांति सेना बनाई। महिलाओं और बेटियों की सुरक्षा और उन्हें न्याय दिलाने के लिए काम शुरू किया। 33 बेटियों को न्याय दिलवा चुकी हूं। शुरुआती दिनों में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। आरोपी पक्ष के लोग फोन करके धमकियां देते। अक्सर देर रात को किसी पीड़िता का फोन आता, मौके पर जाती थी। 2008 से 2014 तक परिवार परामर्श केंद्र की प्रभारी रही। कई परिवारों को टूटने से बचाया। 

2. अपशब्द सुने, लेकिन हार नहीं मानी  : सुमन

सुमन सुराना, हेल्पिंग हैंड फाउंडेशन चला रही हैं। 15 साल पहले इनर व्हील क्लब आगरा मिड टाउन से जुड़कर काम शुरू किया। महिलाओं के स्वास्थ्य और सफाई की मुहिम शुरू की। दो साल पहले हेल्पिंग हैंड फाउंडेशन खोला। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया। कई बार अपशब्द सुनने पड़े, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। संगठन में करीब 30 चिकित्सकों को जोड़ा। बालिकाओं को जागरूक करने के लिए शिविर लगाए, सैनेटरी नेपकिन बांटकर उपयोगिता समझाई। लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई, कढ़ाई, मेहंदी की क्लास शुरू कराई।

3. आवाज उठाई तो सुनने पड़े ताने  : शीतल

एक स्कूल में प्रधानाचार्या शीतल अग्रवाल कहती हैं कि निजी साफ-सफाई रखने से विशेष दिनों में बीमारियों से बचा जा सकता है। जब मैंने इस मुद्दे को उठाया तो लोगों के ताने सुनने पड़े। कुछ प्रतिष्ठित लोगों ने कहा कि मैं सस्ती लोकप्रियता के लिए यह सब कर रही हूं। तीन साल पहले एक कॉलेज में प्रिसिंपल बनी तो बेटियों की समस्या को और समझा। महिलाओं की ‘स्वास्थ्य एवं सुरक्षा’ के लिए काम करने का निश्चय किया। ऑल स्कूल वेलफेयर एसोसिएशन (असवा) के कोषाध्यक्ष पवन अग्रवाल ने मदद की। रुनकता के पास पहली बार शिविर लगाया तो ग्रामीणों ने दुत्कारा। अब सोच बदल रही है। 

4. बेटियों को स्कूल में पहुंचाया : ममता गोयल

छह साल पहले ‘हेल्प बॉक्स’ नाम से फाउंडेशन शुरू किया। इससे सात सदस्य जुडे़ हैं। स्कूल को गोद लेकर वहां पढ़ने वाले बच्चों का खर्चा उठाते हैं। 50 बच्चियों की शिक्षा का दायित्व है। शिक्षा के साथ उनको हाथ का हुनर भी सिखा रहे हैं। शुरुआत में बहुत मुश्किल आई। अधिकांश बच्चियां बस्तियों से हैं। माता-पिता मजदूरी या जूते की फैक्टरी में काम करते। बच्चियों का दाखिला तो करा देते लेकिन स्कूल में भेजते नहीं। बच्चियों को स्कूल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उठाई। ताने मिले, हर रोज बैग टांगकर पता नहीं कहां जाती हूं...। लेकिन मैंने किसी की नहीं सुनी। 

5. आत्मविश्वास की कमी बनी रोड़ा : अर्निमा भार्गव

अर्निमा भार्गव ने आठ साल पहले आशियाना महिला समिति के साथ जुड़कर महिलाओं के लिए काम करना शुरू किया। सालभर समिति की ओर से सिलाई, कढ़ाई, मेहंदी आदि के कोर्स कराए जाते हैं। गर्मियों में बेटियों के लिए जूडो की क्लास लगाई जाती हैं। गांवों में महिलाओं को मशीन लगवाकर सैनेटरी नेपकिन का निर्माण कराया। मशीन लगवाकर दोने बनवाए। कपड़े देकर थैले, कपड़े सिलवाए। ग्रामीण अंचल में महिलाओं में आत्मविश्वास की कमी है। वो नया काम करने से कतराती हैं। उनका विश्वास जीता। इसके बाद उन्होंने उत्साह के साथ काम किया। समय से सामान बना कर दिया।