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महिलाएं कभी कमजोर थी ही नहीं, इतिहास है साक्षी: आरुषि

Published - Thu 01, Aug 2019

अमर उजाला अपराजिता अभियान के तहत हुआ ‘पर्यावरण में महिलाओं की भूमिका’ पर संवाद, कहा, पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सरकार पर निर्भरता नहीं स्वयं करें पहल

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देहरादून। महिलाएं कभी कमजोर थीं ही नहीं, जो उन्हें आज सशक्त बनाने की बात कही जाती है। ऐसा कौन सा क्षेत्र है, जहां महिलाओं ने अपना लोहा नहीं मनवाया। उत्तराखंड का इतिहास इस बात का साक्षी है कि आंदोलन से जो भी बड़े बदलाव समाज में आए हैं, उनमें न सिर्फ महिलाओं ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया, बल्कि उनका नेतृत्व भी किया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण गौरा देवी हैं, जिनके नेतृत्व में चिपको आंदोलन चला। सामाजिक कार्यकर्ता, कथक नृत्यांगना, महिला उद्यमी व फिल्म मेकर आरुषि निशंक ने पर्यावरण सहित विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिका पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि महिलाओं से ही सृष्टि है, लेकिन उन्हें कभी श्रेय नहीं मिल पाया।
अमर उजाला अपराजिता 100 मिलियन स्माइल्स अभियान के तहत सोमवार को अमर उजाला कार्यालय पटेलनगर में ‘पर्यावरण में महिलाओं की भूमिका’ विषय पर संवाद का आयोजन किया गया, जिसमें बतौर मुख्य अतिथि पहुंची सामाजिक कार्यकर्ता आरुषि निशंक ने कहा कि नदी, पानी, पेड़ आज वर्तमान में अहम मुद्दे हैं। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए हम सरकार पर निर्भर नहीं हो सकते हैं। यह एक लंबा कार्य है, जिसके लिए सभी को एकजुट होकर लगातार कार्य करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भगीरथ को सालों लग गए, तो हम भी यह आसानी से नहीं कर सकते। हम अपने बच्चों में आदतें डालें कि पेड़ लगाएं, पानी को बर्बाद न करें। आरुषि ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि यदि तीसरा युद्ध हुआ तो वह पानी के लिए होगा। हमारी पहचान गंगा से जुड़ी है। ऐसे में हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है कि हम उस गंगा के  बारे में सोचें। उन्होंने कहा कि हम वो नारी शक्ति हैं, जिसने सृष्टि का सृजन किया। हम प्रकृति हैं और जब प्रकृति ने जब कुछ अच्छा सोचा तो सृष्टि का सृजन किया और जहां गलत तत्व सामने आए तो उनका नाश किया है। पानी सबको चाहिए, सांस लेने के लिए हवा चाहिए। इसलिए पर्यावरण के बारे में सोचना सभी के लिए जरूरी है। इस दौरान छात्राओं व महिलाओं ने भी अपने विचार रखे। साथ ही पर्यावरण संरक्षण के लिए अपने सुझाव भी दिए। इस मौके पर नैना खैर, आस्था अस्वाल, नेहा भट्ट, सोनम शर्मा, नीतू, मेघना, दिव्या अरोड़ा, कुसुमलता सेमवाल, अंकिता राय, अंजली सेमवाल आदि मौजूद रहे।

  • हमें अगर पर्यावरण को ठीक करना है कि तो पहले अपनी आदतों को सुधारना होगा। प्लास्टिक की बोतल में पानी पीना और खाना खाना बंद करना होगा। प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है। अब हमारी बारी है, इसके संरक्षण और संवर्द्धन की। रिस्पना और बिंदाल नदी की स्थिति आज हमारे सामने है। इन नदियों की स्थिति सुधारने के लिए सभी को आगे आना होगा। - सुजाता पॉल, सामाजिक कार्यकर्ता
  • हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि हम कैसे पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में अपनी भागीदारी निभाएं। इसके कई तरीके हैं। बस छोटी सी शुरुआत करने की जरूरत है। सबसे पहली शुरुआत हमें अपने घर के सदस्यों में अच्छे संस्कार देने से करनी चाहिए। - दीक्षा भट्ट
  • पानी साफ नहीं रह गया। हवा में अब वो ताजगी नहीं। इसका मतलब हम अपनी पहचान खो रहे हैं, क्योंकि हमारा राज्य तो अपनी ताजी हवा और साफ पानी के लिए ही जाना जाता है, लेकिन आज स्थिति उलट है। पर्यावरण को स्वच्छ और इसके संरक्षण का जिम्मा किसी एक का नहीं है। - सृष्टि, गीता
  • हमें इस ओर चिंता करने की जरूरत है कि  अपने तक सिमट कर न रह जाएं। महिलाओं को पुन: अपनी ताकत से बहुत कुछ बदलना है और यह तभी होगा जब वह अपनी ताकत को पहचानेेंगी। - दीपशिखा
  • आज भी हम कूड़ा कहीं भी फेंक देते हैं। हमें यह सब चीजें सुधारनी होंगी, जिसमें परिवार, कालोनी और शहर के लोगों को एकजुट होना पड़ेगा। बच्चों को भी बचपन से ही पर्यावरण के महत्व के बारे में बताना होगा। - अनुुपमा उनियाल

पिता से संस्कार मिले और बनाई अपनी अलग पहचान
आरुषि निशंक का कहना है कि भले ही वह पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान में कैबिनेट मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की बेटी हैं, लेकिन उन्होंने समाज में अपनी पहचान अपने बलबूते पर बनाई है। बतौर आरुषि, पिताजी से मुझे जो मिला है वह हैं संस्कार और यही मेरी ताकत है। वह कहती हैं कि मेरे लिए बड़ी चुनौती थी, अपनी अलग पहचान बनाना। क्योंकि मेरे पिता का नाम मुझसे जुड़ा है। मैं राजनीति परिवार से हूं, लेकिन इससे पहले मैं एक मनुष्य हूं, जिसकी समाज के प्रति भी कुछ जिम्मेदारियां हैं। इसलिए मैंने इस क्षेत्र को चुना।