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कुछ इस तरह जरूरतमंद लोगों के जीवन में रोशनी भर रहीं प्रतिमा और मधु

Published - Tue 05, Mar 2019

अपराजिता सोशल फाइटर्स

aparajita social fighter pratima and madhu bhatia

पिता सिविल सेवा से रिटायर होने के बाद पेंशनधारकों के हक के लिए संघर्ष करते रहे। उनकी बदौलत ऐसा माहौल मिला, जिसमें हमने लोगों के काम आना सीखा। छोटे-छोटे प्रयास चलते रहे। जब हम दोनों रिटायर हुए तो तय किया कि अब सामाजिक यज्ञ में एक आहुति हमारी भी पड़नी चाहिए। यह संकल्प है अवध गर्ल्स पीजी कॉलेज से सेवानिवृत्त शिक्षिका डॉ. प्रतिमा भाटिया और नारी शिक्षा निकेतन से रिटायर्ड शिक्षिका मधु भाटिया का। दोनों बहनें समाज के विभिन्न जरूरतमंद तबके के जीवन में अपने-अपने स्तर से रोशनी भर रही हैं। डॉ. प्रतिमा तो आकांक्षा समिति की एकमात्र ऐसी अध्यक्ष हैं, जिन्हें आईएएस अफसर की पत्नी न रहने के बावजूद चुना गया। वे कहती हैं, मेरी थीसिस कामकाजी महिलाओं पर थी। इस कारण महिलाओं की समस्याओं को करीब से जानने का मौका मिला। फिर एंथ्रोपोलॉजी पढ़ाते वक्त जब अपने स्टूडेंट्स से फील्ड वर्क कराती थी, तब बड़ी संख्या में संस्थाओं को जानने का मौका मिला। कुछ समय बुुजुर्गों के साथ बीता। वहीं मानसिक तौर पर कमजोर लोगों के संपर्क में आकर उनकी हकीकत को जान सकी।

किसी के काम आना ही मकसद
डॉ. प्रतिमा व मधु भाटिया कहती हैं कि हमने दो बच्चों को गोद लिया है। सात साल के जिस बच्चे को गोद लिया, वह आज अपने पैरों पर न केवल खड़ा है, बल्कि दूसरों को प्रशिक्षित कर रहा है। वहीं, दूसरा अभी दसवीं का एग्जाम दे रहा है। वे कहती हैं, हम आकांक्षा, नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड व समर्थ फाउंडेशन जैसी संस्थाओं से जुड़े हैं। लोग हमें पुराने कपड़े, सामान व अन्य चीजें दे जाते हैं, जिन्हें हम जरूरतमंदों तक पहुंचा देते हैं। इसके अलावा किसी को आर्थिक मदद देनी हो तो हम अपने जानने वालों से कलेक्शन कर मदद करते हैं।

‘मदद करने लिए संगठन बनाना जरूरी नहीं, किसी जरूरतमंद के काम आने के जरिए बहुत हैं।’
- प्रतिमा भाटिया, मधु भाटिया